धार्मिक मूलतत्ववादीओं की संख्या बढ़ती जा रही है और यह हमारे समाज के हित में बिलकुल नहीं है। अधिकांश लोग इस बात से सहमत होंगे, मगर इस बात की छान–बीन करनेवाले लोग बहुत थोडे होंगे कि, धार्मिक मूलतत्ववादी होते क्या हैं । जाहिर है कि, ऐसे लोग अपने धर्म के मूल तत्वों से चिपके रहना पसंद करेंगे । वह चाहते हैं कि उन का जीवन उन के धार्मिक ग्रंथों में दी गयी हिदायत के मुताबिक हो और उस से उनके भगवान उन पर प्रसन्न हो । चूँ कि, अब धार्मिक मूलतत्ववादीओं के कारण समस्याएँ खड़ी होती दीख रही हैं, क्या इस से यह अनुमान निकल सकता है कि, धर्म के मूल तत्व हमारे समाज के लिये हितकारी नहीं हैं? तीन सब से बडे धर्मों की तरफ़ एक नज़र डालते हैः
ख्रिश्चानिटी में मूलतत्ववादी ऐसा मानते हैं कि, भगवान ने अपने आप को बायबल के माध्यम से प्रकट किया है और उन के जने हुए इकलौते बेटे को पूरी मानवजाती को बचाने के लिये धरती पर भेजा है। वह उन के धर्म की पहली आज्ञा को सही मानते हैं- ‘मेरे अलावा कोई अन्य भगवान तुम्हारे सामने नहीं होगा’ इसलिये, पूरी मानवजाती को बायबल के भगवान और उन के इकलौते बेटे जीझस ख्राइस्ट को सही मानना होगा। जो ऐसा नहीं करते वह नरक में जायेंगे। ख्रिश्चानिटी का मूलभूत सिद्धांत हैः- “बाहर की दुनिया में जाओ” और इस कारण से ख्रिश्चन मूलतत्ववादी यह अपना धर्म कर्तव्य समझते हैं कि, जितने हो सके उतने ‘बुतपरस्तों’ का किसी भी उपाय से धर्म परिवर्तन किया जाय।
इस्लाम में मूलतत्ववादी ऐसा मानते हैं कि, इस्लाम ही एकमात्र सच्चा धर्म है और अल्लाह ही एकमात्र सच्चे भगवान हैं, जो चाहते हैं कि सारी दुनिया उन के सामने झुक जाय, उन की शरण में आये। जो मुस्लिम नहीं होते वह नरक में जायेंगे। यह एक केंद्रीय नियम या सिद्धांत है और कुरान में उसे बार बार दोहराया गया है। मूलतत्ववादी उनका यह धर्म कर्तव्य समझते हैं कि, पूरी मानवजाती को इस्लाम स्वीकार करवाना है और वह कुरान की आज्ञा “काफ़िरों के दिल में ड़र पैदा करो” का शाब्दिक अर्थ ले बैठते हैं।
हिंदू धर्म में मूलतत्ववादी ऐसा मानते हैं कि, ब्रह्मन् (अन्य शब्दों या नामों का उपयोग करने की अनुमति है और वैसा उपयोग होता भी है।) यह एकमात्र सच्चे भगवान है। तथापि ब्रह्मन् कोई व्यक्तिगत भगवान नहीं है, जो केवल उन्हीं को बचाते हैं जो उन की शरण में आते हैं और जो नहीं आते उन्हें शाप देते हैं। ब्रह्मन् तो एक अतिशय सूक्ष्म और सचेत तत्व है जो सब (वस्तु और व्यक्ति) के अंदर स्थित है। फिर वह किसी भी धर्म का पालन करते हो या नास्तिक हो, इस से कोई फरक नहीं पडता। वेदों में उद्घोषित किया है, “अयमात्मा ब्रह्म” या “अहम् ब्रह्मास्मि”.
अब, सभी धर्म यही दावा करते हैं कि, एक ही सब से बडी शक्ति है, जिसे अंग्रेजी में ट्रू गॉड अरेबिक में अल्लाह और संस्कृत में ब्रह्मन् कहते हैं। यह सच है कि, केवल एक ही सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वसाक्षी परमेश्वर है, जो इस सृष्टि के अस्तित्त्व का कारण है। इस से अलग कुछ हो ही नहीं सकता। तथापि, अक्सर हिंदूओ के समझ में यह नहीं आता कि, ख्रिश्चन और मुस्लिम लोग उन के एकमात्र ट्रू गॉड या अल्लाह में कैसे विश्वास रखते है जो केवल उन्हीं के धर्म का पालन करनेवाले भाईयो और बहनों को बचाता है औऱ बाकी सभी काफ़िर या बुतपरस्तों को नरक में धकेल देता है। इस धारणा को समझना सामान्य तर्क बुद्धि की क्षमता रखनेवाले इन्सानों के लिये मुश्किल है। किंतु, अगर बचपन से यही संस्कार मिले हो कि, केवल हमारा धर्म ही सच्चा है और अन्य लोग बुरे हैं क्यों कि वह इसे स्वीकार नहीं करते, तो यह सही लगना स्वाभाविक है। मेरा खुद का यही अनुभव है- मैं यही मानती थी कि, केवल हम ख्रिश्चन ही स्वर्ग में जायेंगे क्यों कि हमें गॉड ने चुना है …
तो अब यहाँ दो सौ करोड से भी ज्यादा आबादीवाले धर्म आमने सामने एक दूसरे के विरोध में खड़े हैं। एक कहता है, “केवल हमारा गॉड/अल्लाह सच्चा है। अगर आप उस में विश्वास नहीं रखते, तो आप नरक में जायेंगे।” दुसरा उस का उत्तर देता है, “नहीं, केवल हमारा गॉड/अल्लाह सच्चा है। और अगर आप उस में विश्वास नहीं रखते, तो आप नरक में जायेंगे।” यह बात अगर इतनी ज्यादा गंभीर न होती तो हम इसे हँस कर टाल भी देते, मगर मूलतत्ववादी इस को चिपके रहते हैं और दुर्भाग्यवश दोनो धर्मों के उपदेशक भी उसी का समर्थन करते हैं। स्वाभाविक है कि, इस दुनिया में महान संघर्ष पैदा करने का यह एक बडा कारण है।
हिंदुत्व (या सनातन धर्म, जिस नाम से यह जाना जाता था) इस तरह की प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेता। वह एक बहुत पुरानी परंपरा है। विश्व में ख्रिश्चानिटी या इस्लाम के आने के पहले से वह हुआ करता था। हिंदुत्व में ब्रह्मन् हमारे उपर कहीं से नजर रखनेवाला पुरुष नहीं है। वह तो सब के अंदर स्थित, सचेत, सजीव और प्यारा है। वह हमेशा सब को अपने सच्चे आत्मभाव का अनुभव करने का और ब्रह्मन् में विलीन होने का और एक मौका देगा, जिस के लिये कई जन्मों की आवश्यकता हो सकती है। हिंदू शास्त्र उद्घोषित करते हैं, “वसुधैव कुटुंबकम्” “सर्वं खल्विदं ब्रह्मम्।” “तत्वमसि।” “ब्रह्मन् वह नहीं है जो आप का मन सोचता है, बल्कि वह है जो आप के मन को सोचने के काबिल बनाता है।.” “सब में भगवान का रुप देखो।” “निसर्ग का सन्मान करो।”
और प्रार्थना के प्रारंभ में कहते हैं: “ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु। मा विद्विषावहै। हम (गुरू और शिष्य) दोनों का साथ में रक्षण हो, साथ में पोषण हो, साथ में बलसंवर्धन हो, विद्या का तेज बढ़ता रहे और हम दोनों में कोई द्वेष जैसी बाधा न आये ।” “चारो ओर से हमारे पास अच्छे विचारों का आगमन हो” “सर्वे भवन्तु सुखिनः।” आदि
अधिकतर हिंदू भी उन के धर्म के यह मूलतत्व नहीं जानते और ऐसा मानते हैं कि, उस में केवल कर्मकांड, अपनी मनोकामना पूरी करने के लिये भगवान की अपने इष्ट के रूप में पूजा या अर्चना और त्योहार मनाना इतना ही है। वह यह नहीं समझते कि, केवल हिंदू धर्म ही सर्वसमावेशक है। वह किसी एक समुदाय को दूसरे समुदाय के सामने नहीं रखता। वह विज्ञान का विरोध भी नहीं करता और न हि केवल अपनी बुद्धि का प्रयोग करने की अनुमति देता, उपर से उस को प्रोत्साहित करता है।
शायद इसी कारण पश्चिमी देशों में जब धर्मों की सूची बनाई जाती है, तब हिंदू धर्म उस में समाविष्ट नहीं किया जाता। पश्चिमी लोगों के लिये कोई धर्म धर्म नहीं हो सकता, अगर वह किसी अप्रमाणित तत्वों पर आधारित नहीं हैं जिस से वह अन्य धर्मों से अलग सिद्ध हो सके। और यह बात पूरी मानवता के सामंजस्यपूर्ण रीत से साथ रहने के लिये हानिकारक है। क्या इस इक्कीसवी सदी में हमारे लिये यह उचित समय नहीं है कि, जो एक समुदाय को दूसरे समुदाय के विरोध में खड़ा करे, ऐसे हानिकारक, अप्रमाणित मूलतत्वों को त्याग करे?
सब से अच्छा विकल्प है कि हम हिंदू मूलतत्वों का अनुसरण करें। तो चलें, हम सब मनुष्यों में, कुदरत में और पशुओं में भी ईश्वरत्व देखनेवाले हिंदू मूलतत्ववादी बनें। इसे हमारे विश्व का लाभ होगा.
मारिया विर्थ
अनुवादक
सुभाष फडके
5 Comments
Only recently I have come to know the difference between Christianity , Islam and Hinduism. Thank you Maria.
Read Being Different by Rajiv Malhotra (available in FlipKart). Your views about Sanatan Dharma will change. All Hindus must read that book.
So true in explanation! But what I realise that the learning of great virat Hinduism needs great learning. It’s more like all have just mug up the formulae but none knows the meaning. Just hastly we repeat them and passing our phases in life. But real learning is vanishing. I am not able to teach my kid sanskrit.
How to get into deeper learning of Hinduism rather juse practicing it without knowing deeply.
i feel wanting to know the truth about ourselves and doing some sadhana is essential
सत्य सनातन हिन्दू धर्म की जय