मैं काफ़ी अर्से से भारत में स्थित हूँ, फिर भी कई बाते समझने में मुझे अभी भी कठिनाई महसूस होती है। उदाहरण के लिए, जब भी भारत को एक हिन्दू देश मानने की बात होती है, तब बहुत सारे शिक्षित भारतीय क्यों उत्तेजित हो जाते हैं? भारत की बहुसंख्य जनता हिन्दू है। भारत की परंपराएँ इस देश की खासियत मानी जाती हैं। पश्चिमी लोग भारत की तरफ आकर्षित होने की यह एक प्रमुख वजह है। फिर भी इस देश की हिन्दू जड़ों का स्वीकार करने में कई भारतीय नागरीकों को क्या बाधा हो सकती है?यह रवैया दो तरह से अटपटा है।
पहेली बात यह है कि, इन शिक्षित हिन्दूओं को केवल ‘हिन्दू’ भारत देश के बारे में समस्या होती है, लेकिन अन्य ‘मुस्लिम’ या ‘ख्रिश्चन’ देशों से नहीं। उदाहरण के लिये, जर्मनी में केवल ५९ प्रतिशत आबादी दो प्रमुख ख्रिश्चन चर्चों से (प्रोटेस्टंट और कॅथॉलिक) जुडी हुई है, फिर भी इस देश को ‘ख्रिश्चन’ देशों की सूची में शामिल किया जाता है। चॅन्सेलर अँजेला मेर्केल ने हाल ही में जर्मनी की ख्रिश्चन जड़ों का जिक्र किया था और जनता से ‘ख्रिश्चन मूल्यों की तरफ़ वापस जाने’ का अनुरोध किया था। २०१२ में उन्हों ने जी-८ देशों की शिखर वार्ता में जाने की यात्रा, उन्हें जर्मन कॅथॉलिक दिवस के अवसर पर अभिभाषण करना था, इस कारण एक दिन के लिये विलंबित की थी। अँजेला मेर्केल की राज्यकर्ता पार्टी के साथ जर्मनी की दो प्रमुख राजकीय पार्टीयोँ के नामों में ‘ख्रिश्चन’ शब्द का समावेश है।
जर्मन लोगों को उन के देश को ख्रिश्चन कहा जाने पर कोई उत्तेजना नहीं होती, हलांकि अगर ऐसा होता तो मैं समझ सकती हूँ। क्यों कि चर्च का इतिहास वाकई भयानक है। ख्रिश्चानिटी की तथाकथित यशोगाथा की बुनियाद जुल्म और जबरदस्ती पर आधारित है। ‘धर्म परिवर्तन करो या मरो’ का विकल्प पाँचसो साल पहेले सिर्फ अमरीका की मूल रहिवासी जनता को ही नहीं दिया गया था। बल्कि बारासो साल पहेले जर्मनी में भी, कार्ल द ग्रेट नामक सम्राट नें उन के नये विजय प्राप्त मुल्कों में ईसाई दीक्षा (बपतिस्मा) लेने से इनकार करने वालों के लिये मौत की सजा का ऐलान किया था। इस से उनके सलाहकार अल्कुइन ने प्रभावित हो कर कहा था, “आप उन्हें जबरदस्ती से बापतिस्मा तो दे सकते हैं, मगर उन में जबरदस्ती से श्रद्धा कैसे पैदा करोगे ?”
अपने सौभाग्य से अब वह दिन नहीं रहे, जब चर्च की रूढीओं के खिलाफ आवाज उठाने के लिये प्राणों का मोल चुकाना पडता था। आज कल पश्चिमी देशों में विचार विभिन्नता के कारण चर्च से संबंध तोडने वालों का एक सतत प्रवाह देखा जाता है। इस में से कुछ व्यक्ति चर्च के अधिकारिओं के नापाक वर्तन से ऊब गये हुए होते हैं, तो कुछ चर्च की रूढीओं में विश्वास नहीं कर सकते, उदाहरण के लिए, ‘जीझस के सिवाय कोई चारा नहीं है’ और ‘जो इन तत्त्वों को स्वीकार नहीं करता, उसे भगवान नरक में धकेलते हैं‘ इत्यादि
भारतीयों के हिन्दू शब्दसे जुडने के प्रति अनिच्छा या कठिनाई को न समझ पाने का दूसरा कारण यह है कि, अब्राहामी धर्मों से हिन्दू धर्म की एक अलग ही श्रेणी है। इतिहास हमें यही बताता है कि, ख्रिश्चानिटी और इस्लाम की तुलना में हिन्दू धर्म ने अपने प्रसार और प्रचार के लिये प्राचीन काल में शास्त्रार्थ और तर्क-वितर्क का अक्सर उपयोग किया था, ना कि बल का. इस धर्म की परंपराएँ कभी भी रूढीओं में अंध विश्वास रखने की और अपनी बुद्धि के किवाड बंद रखने की मांग नहीं करती थी। उल्टा हिन्दू धर्म में अपनी बुद्धि और तर्क की कसौटी करने की चुनौती पायी जाती है। सत्य की यह ऐसी शोध है, जिस का आधार होते है शुद्ध चारित्र्य और बुद्धि । (जिसे पाने की विधि भी बताई गई है।) इस में केवल धर्म या तत्त्वज्ञान ही नहीं, बल्कि संगीत, वास्तु कला, नृत्य, विज्ञान, अर्थ शास्त्र, ज्योतिष, राजनीती इत्यादि कई सारे विषयों के बारे में महान और प्राचीन साहित्यक रचनाएँ समाविष्ट हैं।
यदि जर्मनी अथवा कोई भी अन्य पश्चिमी देश के पास इस प्रकार का साहित्य भंडार होता, तो निश्चित रूप से वह इस पर गर्व महसूस करते और उस की महानता का बारबार जिक्र करते। जब पहली बार मुझे उपनिषद पढने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, तब मैं अवाक हो गई थी। यहाँ सहजज्ञान संबंधित ऐसी बाते इतनी स्पष्टता से कही थी, जो मैं अंदर ही अंदर जानती तो थी, लेकिन उनकी अभिव्यक्ति करना मेरे लिये असंभव था। ब्रह्मन् अपूर्ण नहीं है, वह सब के अंदर का अदृश्य, अविभाज्य मूलतत्तव है। अंतिम सत्य को पाने का मौका हर व्यक्ति को बार बार मिलता है और उसे अपनी राह चुनने की स्वतंत्रता है। उस की सहायताके लिये मार्गदर्शी सूचनाएँ बताई गयी हैं, लेकिन कहीं भी थोपी या लादी गयी नहीं है।
भारत में बसने के प्रारंभिक दिनों में मुझे ऐसा लगता था कि, सभी भारतीयों को अपनी इस महान परंपराओं का ज्ञान होगा और इसके प्रति अभिमान होगा। धीरे धीरे यह स्पष्ट होता गया कि, मैं गलत थी। ब्रिटिश सत्ता के शासकों ने भारतीय समाज के अभिजात वर्ग को प्राचीन परंपराओं से ना ही केवल अलग करने में कामयाबी पायी थी, बल्कि उन के मन में उसके प्रति घृणा भी पैदा की थी। नवशिक्षित नागरिकों के पास संस्कृत का ज्ञान नहीं था, यह बात भी ब्रिटिशों के पक्ष में थी और इसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश अपनी कोई भी बात उनकी दिमाग़ में आसानी से डाल पाये। अपनी परंपराओं के प्रति अज्ञान और ब्रिटिशों ने किया हुवा मनोमार्जन, यही शायद आधुनिक भारतीयों के कुछ भी हिन्दू होने के प्रति दिखाई देनेवाली घृणा का कारण है। उन्हे इस फ़र्क का पता नहीं है कि, पश्चिमी धर्मों में केवल अंधश्रद्धा रखनी (कमसे कम दिखानी) होती है, और उस में अनुयायीओं को सोचने की स्वतंत्रता निषिद्ध मानी जाती है, तथा बहुपरत हिन्दू धर्म में स्वतंत्रता और अपनी बुद्धि का उपयोग करना यह दोनों चीजे संभव है।
इस शिक्षित वर्ग के ज्यादातर व्यक्तिओं के ध्यान में यह नहीं आता कि, एक तरफ़ अपने खुद के धरम की आलोचना करने के लिये पश्चिमी शक्तियाँ, खास करके वह जो अपना धर्म इस बडे देश में फैलाने के सपने देखते हैं, उन की पीठ थपथपायेगी क्यों कि उस से पश्चिमी युनिव्हर्सलिझम भारत में फैलेगा। दूसरी तरफ चर्च सहित कई अन्य पश्चिमी लोग भारतीय ज्ञान का मूल्य अंदर से पूरी तरह समझते हैं, और या तो मौका मिलते ही मूल स्रोत को छोड कर उसे अपने नाम से प्रस्तुत करने की चेष्टा में लगे हैं, अथवा उसे ऐसे पेश करना चाहते है, जैसे कि यह सत्य और ज्ञान मूलतः पश्चिम में ही पैदा हुए थे।
यदि केवल मिशनरीयों ने हिन्दू धर्म की निन्दा की होती, तो इतना बुरा नहीं होता, क्यों कि उनके पास यही लक्ष्य था और वह चतुर भारतीयों के समझ में आ भी सकता था। बुरा तो इस बात का है कि, हिन्दू नाम धारण करनेवाले भारतीय इस काम में उनकी मदद करते हैं, क्यों कि उन्हें यह गलतफ़हमी है कि, उनका धर्म पश्चिमी धर्मों से नीचले दर्जे का है। जो कुछ भी हिन्दू है, उस का पूरा ज्ञान न पाते हुए ही वह उस को घटिया मानते हैं। अपनी परंपराओं के बारे में उन्हे सिर्फ उतना पता होता है, जितना ब्रिटिशों ने उनको बताया हो। उदाहरण के लिये, धर्म की महत्त्वपूर्ण बाते मूर्तिपूजा और जातिव्यवस्था हैं, इत्यादि। उन्हे यह बात समझ में नहीं आती कि, सर्वसमावेशक और गाढी हिन्दू परंपराओं का पूरे दिल से समर्थन करने में भारत का नुकसान नहीं है, बल्कि फायदा ही है। कुछ दिनों पहले दलाई लामा ने कहा था कि, जब वह ल्हासा में युवा अवस्था में थे तभी से वह भारतीय विचारों की महानता से प्रभावित थे। उन्हों ने आगे कहाः “भारत में विश्व की मदद करने की क्षमता है।”
पश्चिम-प्रभावित अभिजात वर्ग के भारतीयों को यह सच कब समझ में आयेगा?
मारिया विर्थ
सुभाष फडके, अनुवादक
19 Comments
you are right Maria. its true.
You made a right observation Maria. I’d like to add that people who are born hindus, but neo-non-hindus are the most vulnerable people in India. They are off from mainstream. They have access to upper society (rich!) which is mere 1%. But, the problem is, they influence media/communication/authority. Poor Indians are still rooted to their culture knowingly or un-knowingly.
Hindus have forgotten Sansakrit subhashit that who protects DHARM ,DHARM proctects him.Have you ever heard or read any speech or an article by so called Hindu Pithadhish showing concern as is seen in Maria Wirth’s thoughts?No. And further Gandhi and Nehru announced this country as Nidhrmi while allowing partition to Muslims on basis of religion and forced Hindus not to have their own nation like other religions and that too having 80% population of Hindus.But I believe one day will come in near future when then rulers of this country will correct this blunder, and this will put full stop to further break. Hindus even having ruled by foreigners more than thousand years and experienced their cruelty for conversion of religion have not learned any thing. One day they will rise from long sleep not because of their own wisdom by tyranny of others.
best observation
Maria – Its good to know that you have been here and making a lot of studies about Hindutav , I read article and appreciate your thoughts on indian religion and its sovereignty …besides that it gives me an uncomfortable feeling that in your Article you simply praised the good things of hinduism and explained why & how people of india should be proud of Hindutva …there may be two facts behind that …either ,you read only that hindu literature which has been promoted by Hindu fundamentalist & that Elite class or you misinterpreted the meanings of what is originally written in the Veds and Puraans/Manusmriti /Ramayan /shastars etc and other Hindu literature. (first fact seems to be more close to reality ) ……..
After reading my all comments ,if you think we can talk further one by one on the things that are found TOTALLY NON-SENSE and against humanity in Hindutva which everyone around the world can understand easily and will never accept as a sensitive and neutral human being.
You rightly pointed out that many people oppose hindutav because they are in favor of Islam/Christianity or any other religion or under the western culture influence .
But there is a huge part of the population whose oppose is based on the facts and reality ,
Hindutav by its nature & laws divide the humanity in to 4 levels..i know you touched this word ‘castism’ in the last para of your article but the fact is far beyond your understanding on this subject . i think for a person who is not raised up in india in that environment will not fully understand the gravity of the fact of ‘Castism’ how it has been drained to the roots of our culture . A liberal women if read & understand ‘hindutva’ shall feel ashamed on what has been written and has been asked to follow by the hindu women. Hinduism by its nature, does not treat human beings as equal.–
Yes i know that next thing you will say ….. “Religion is not bad ,the followers may be bad” …hmmmmm thats a matter of honesty ….Maria ….. every song ,music , Art , literature and culture has a class character , all of them directly or indirectly serves the interests/rights of a particular class…and Hindutav by nature and by all its means serves the interests of ruling/and the top class of those 4 classes formed by Hindutva . ( i would not say Brahmins ..it has a wage meaning that needs to be discussed in details).
i hope you know before 1947 India and Pakistan was one country ,the extreme conflict between hindus and Muslims came after that …(despite Islam is no more different than Hinduism for that part)….If this country accepts this religion, it automatically will forces it on people like Pakistan is doing that now…hope you have been seen or aware of the consequences HINDI-HINDU-HINDUSTAAN slogan … Byproduct of hindutva is no more different than Nazism in Germany infact the agenda and foundation of a huge organization RSS follows exactly what Nazis did in Germany . I guess you will neva eva support what Nazi’s did . The chiefs /Shankracharyas Sadhus and VHP leaders stil rate hindu laws over the constitution of India ..you can see U tube the direct statements from these fundamentalists. they simply condemn and refuse to follow any fedral regulations and laws of India.
I suggest you to go through ‘Sikhism’ as well which came in to existence as a Steep opposition to hinduism in 17th century ..(let me tell you i am not even a follower of sikhism or any other religion ) just for the honest and true evaluation of the matter i suggest you to go through that . You will find a huge contradictions as a ‘demand of time’ of that Era and further many evolutions in the history of Hinduism.
We the people ,who understand their responsibility towards nation , it’s people and really needs the peace and prosperity of india , should always condemn Hindutva …..I would
This is a very very surface level evaluation that i gave regarding the subject , i hope you know more than that ..but the need is to present and honest and true evaluation for the sake of humanity and justice.
Speechless.
Bulls eye!
मै आपसे पूर्णत: सहमत हूँ।
परन्तु इसका निवारण क्या है?
Mr. mandeep 🙂
Its very shocking that you don’t knw anything about your own nation.
I am very happy in this country because we have unity with sikh community.
Indeed above you didn’t mention why shikh community form in India??? Just remember Sikh community is form to protect Hindus from muslim invadors.
As a Hindu,I am very thankful to Sikh community.
Lets talk in Hindi!
Becouse Miss Maria’s post is in Hindi Language with Devanaagri Script.
वैसे मनदीप वीरे, मै पंजाबी भाषा में भी आपको उत्तर दे सकता हूँ। मैंने अपनी अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग ) की शिक्षा पंजाब के संगरूर जिला के लोंगोवाल प्रान्त में किया है। अत: मुझे सिख समप्रदाय से हमेशा स्नेह मिला।
जैसा की आपने हिन्दु धर्म के बारे में कहा की इसमें जातिवाद का प्रचलन था,वैदिक समय से ही। यह आपने बिलकुल सही कहा। परन्तु मुझे छमा करना बन्धु जैसे लगता है आपने ना तो वेद ना ही उपनिषद का अध्यन किया है अगर किया है तोह सही से नहीं किया अर्थात आपने किसी कट्टर ईसाई,मुस्लिम या फिर खालिस्तान समर्थक के पुस्तक का अध्यन किया। आप दुबारा से इन पुस्तक का अध्यन कीजिये। ये धार्मिक पुस्तक गीताप्रेस गोरखपुर के किसी भी बुक स्टोर या फिर रेलवे स्टेशन पे मिल जायेगा। आज-कल इंटरनेट पे भी बहुत से साईट पे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते है। यदि फिर भी अगर आपको नहीं मिले तोह मै आपके लिय प्रबंध करूंगा।
वैदिक काल में वर्ण व्यस्था कर्म प्रधान थी न की जन्म प्रधान।
योग: कर्मेशु कौशलम।
अर्थात वैदिक काल में हमेसा काम को ही प्रधान बताया गया है। जैसा कर्म करेंगे वैसा आपका गुण और धर्म बनेगा।
वैदिक काल में चार वर्ण की चर्चा की गई है।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और सुद्र।
ये सारे वर्ण(जाति) कर्म प्रधान ही थे अर्थात ब्राह्मण का पुत्र अपनी इक्छा से कोई भी कार्य चुन सकता है परन्तु उसे अपना कौशल दर्शाना होगा। अन्यथा उसे उसके कौशल के आधार पर कार्यत किया जाता था और बाकी के भी वर्णों में कार्य का चुनाव इसी प्रकार किया जाता था।
परन्तु धर्म की हानि शने-शने होता गया।
यह आज भी निरंतर होता जा रहा है।
अगर आपको हिन्दू धर्म से किसी भी प्रकार का कोई प्रश्न है, समस्या है तो मुझे लिखे या आप मुझे आमंत्रण करे आपके घर आयेंगे हम। अगर संभव नहीं तोह हम आपको आमंत्रित करते है , आओ हमारे घर आईये। या फिर skype से वार्तालाप कर सकते है।
मेरा skype id है- gunjan_genx
आपके उत्तर का मै प्रतीक्षा कर रहा हूँ।
आपका विश्वासी
गुंजन कुमार
गुंजन कुमार जी – You mentioned that
Lets talk in Hindi!..Becouse Miss Maria’s post is in Hindi Language with Devanaagri Script.Becouse Miss Maria’s post is in Hindi Language with Devanaagri Script.
My friend :- Maria’s post was originally not in hindi (devnagri) it is translated to hindi by another Hindu scholar Subhash fadke –
infact – Not difficult to imagine how the translator has pounded hindu spirit in this ,which may not be originally , so my answer was not to Subhash fadke , it was to maria ,She doesn’t even know hindi , so I asked in English .
I tried to reach Maria directly as well , but she did not replied.
जे तुसी सलीट SLIET दे परोडकट हो फेर आपां पंजाबी च वी गल कर सकदे हां
अछा लगा आपका जवाब देखकर , सही कहा कि मैने पुरे उपनिछद या वेद वगैरा नही पढे , लेकिन जितने भी पढे हैं उससे आगे पढने की इचछा नही हुई ,
आपने कहा ‘अर्थात वैदिक काल में हमेसा काम को ही प्रधान बताया गया है’ मतलब इसीलिए जातियां बनी , तो फिर येह जाति-वरण वगैरा सिरफ भारत में ही कयों , दुनिया के बाकी देशों में भी श्चम विभाजन उसी तरीके से हुआ होगा , जैसे भारत में हुआ ,
जैसे आपने कहा ब्राह्मण का पुत्र अपनी इक्छा से कोई भी कार्य चुन सकता है परन्तु उसे अपना कौशल दर्शाना होगा। – कया यही बात एक शूदर के लिए भी सही थी ? ।।कितने शूदरों को ब्राह्मण बनने दिया गया ? या फिर किसी शूदर में ब्राह्मण बनने का कौशल ही नहीं था ?
आप किसी भी जात या वरण से हों ( शुदर को छोडकर) कया अपने बचचों की शादी शुदर में करेंगे ?
हिन्दू धर्म में जो औरत जाति पर जो कलंक लगाए गए हैं उसके बारे में आपने कुछ नही कहा ॅॅ ।।
खैर ।।आप अपना फेसबुक आई डी दीजिये ।।मैं आपको आमंत्रित करता हूं , किसी को कहीं आने जाने की जरूरत नहीं , हम वहां बात करेंगे ता जो बाकी लोग भी अपनी बात सुनें और अपने विचार दे सकें ।
गुंजन कुमार जी …..आप तो गूंजे ही नही दोबारा ? i am waiting for your reply ,
Flawless…which in turn made me speechless!
????
Sorry bro..didnt understand..
What is flawless..hinduism???
Dear Mandeep,
Flawless is the creator and flawed is our thoughts,actions etc.
In fact its the very same perfectly perfect imperfection which synthesizes the harmonious balance.
Judging from your question, it seems the discussion would take off in the direction where you would point to millions if not zillions misgivings from Hinduism. If you believe so, so be it. I will not try to upset your harmony.
And if what I construe is true,then IMHO we should close the discussion as we wont be improving upon the silence.
And with this let me be in the harmonious bliss I am.
Well…the issue is not what I believe or you believe..the issue is ‘what is reality? ‘. and and reality is something that can be seen with a logical eyes and mind..not with beliefs.
Reality and truth has no religious character..truth is truth and bullshit is bullshit always.
Anyways brother..thanks to close the subject as I don’t expect any conclusion on this article based on beliefs.
?
Dear Mandeep,
Please find inline..
Well…the issue is not what I believe or you believe..the issue is ‘what is reality? ‘. and and reality is something that can be seen with a logical eyes and mind..not with beliefs.
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The issue with hedonistic hoteads has always been that my belief is a reality while yours is a crap.
IMHO,the wise is who accepts the plurality of truth and not try to impose it on others in a homogeneous way as its accepted by thyself.
Reality is not “only” what “you” see and believe. The world is multi polar and multidimensional. I believe that the attitude of shoving downs once beliefs on others just because you think they are supreme and true is what fundamentalists are ascribed of.
Reality and truth has no religious character..truth is truth and bullshit is bullshit always.
Anyways brother..thanks to close the subject as I don’t expect any conclusion on this article based on beliefs.
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I am not sure what you mean by religious character. You have the right to reject what you want to. But to what others and reject and choose to believe is their prerogative. You might try to convince others with your logic, but if they are not convinced then so be it.
What is bullshit for others is sane for you. Remember,we are all in the same gutter,but some of us are looking at the starts.
And gutting down others beliefs as bullshit doesn’t make world better or peaceful. But rather leaves it contaminated with hate.
But then to some its more important to force their beliefs, rather than earn peace for the world.
Dear Mandeep,
Please find in-line..
Well…the issue is not what I believe or you believe..the issue is ‘what is reality? ‘. and and reality is something that can be seen with a logical eyes and mind..not with beliefs.
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The issue with hedonistic hotheads has always been that my belief is a reality while yours is a crap.
IMHO,the wise is who accepts the plurality of truth and not try to impose his version of truth on others in a homogeneous way as its accepted by thyself.
Reality is not “only” what “you” see and believe. The world is multi-polar and multidimensional. I believe that the attitude of shoving downs once beliefs on others just because you think they are supreme and true is what fundamentalists and unscientific backwards are ascribed of.
For e.g. about a two centuries ago flying in air would be a joke of the day. But today its reality.
What if the right brothers would have succumbed to the many around and surrendered their dreams?
I guess then flying would still be an urban myth today.
Reality and truth has no religious character..truth is truth and bullshit is bullshit always.
Anyways brother..thanks to close the subject as I don’t expect any conclusion on this article based on beliefs.
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I am not sure what you mean by religious character. You have the right to reject what you want to. But what others and reject and choose to believe is their prerogative.
You might try to convince others with your logic, but if they are not convinced then so should it be.
What is bullshit for others is sane for you. Remember,we are all in the same gutter,but some of us are looking at the starts.
And gutting down others beliefs as bullshit doesn’t make world better or peaceful. But rather leaves it contaminated with hate.
But then to some its more important to force their beliefs, rather than earn peace for the world and accept it in its plurality.
The choice is yours, that where you stand. Among the warmongering zealots / pugilists or among the calm ones who are not awash with frenzy.
It does not take a million brain cells to decide that which one is a wise choice.But a voice of a sane soul should be enough. I.e if at all you believe in a soul.
If not, then you dance with the devil.
But the peril of dancing with the devil is,
As the dance goes on you don’t change the devil,
But its the devil which changes you,
And fills you up with hate, rage , vengeance..
Then you become his shining knight,
In the dark world, the supreme hedonist,
Who has to make sure that others agree with your thoughts,
If not, then you shall make those who don’t,
To submit theirs, to yours..!!
And then where is the definition of secularism and fanaticism? We might have to rewrite the dictionary then!
[…] https://mariawirthblog.wordpress.com/2013/08/15/%E0%A4%9C%E0%A4%AC-%E0%A4%9C%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4… […]
बहुत-बहुत अनुकरणीय……।